कानून अर्थात त्याग ,कुछ न कुछ छोड़ना त्याग कहलाता है.यही नियम है जिसपे समाज के गठन की अवधारणा टिकी है.जब त्याग की अवधारणा समाप्त हो जाती है तो समाज बिखरने लगता .फिर इस समाज को उबारने के लिए शूरवीर जन्म लेते है.जिनमे सच्चाई कूट कूट कर भरी होती है. और वे अपने लिए नहीं समाज के लिए जीते है.यहाँ तक की अपने समाज के उत्थान के अपने जीवन तक कुर्बान कर देते है और एक नए समाज की स्थापना कर देते है.इसी वर्त में गांधीजी, सुभाष चन्द्र बोस ,भगत सिंह , उधम सिंह ,दामोदर विनायक,अब्दुल जैसे शूरवीर एक नए समाज का गठन कर जाते है.और आने वाला समाज उनके किये हुए त्याग का स्वाद अनुभव करता है.
कानून अर्थात नियम उस कार्यप्रणाली को कहते है जिसे समाज मानता है जिस पर चलने के लिए सदेव कार्यरत रहता है.ऐसे कानून को विधिक मान्यता प्राप्त होती है.जो उस कानून को तोड़ता है उसके लिए दंड का विधान किया गया है.एक का अधिकार जिसे राज्य दुआरा मान्यता प्राप्त है . उस अधिकार(जीवन) का समान करना दुसरे का कर्तव्य (त्याग)है.अधिकार का अर्थ जीवन यापन करने की आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति है जिसका अर्जन वह सव्यं अपनी क्षमताओं के अनुरूप कर लेता है.इन आवश्यकताओं को पूर्ण करने सम्बन्धी साधनों का मान सामान करना हर दुसरे व्यक्ति का कर्तव्ये है.यही समाज के विकास का आधार है.यदि हम अपने कर्तव्यों के निर्वहन का स्वतः पलना करना आरम्भ कर दे .तो राजकीय विधि की आवश्यकता ही नहीं रह जायेगी और समाज का उत्थान इतना ज्यादा हो जायेगा कि धरती पर साक्षात् स्वर्ग के दर्शन हो जायेंगे.सबसे उत्तम जीवन कि स्थापना हो जायेगी.
जब हम कर्तव्यों को भूल जाते हैं.अधिकारों पर जोर देनाशुरू कर देते ही तो समाज में छीना झपटी शुरू हो जाती जो हिंसा को जन्म देती ही. जब हिंसा शुरू हो जाती ही तो फिर कोई नियम नहीं रह जाता .जिसे हम धर्म कहते हैं उसका दूर दूर तक नामों निशान तक ही मिट जाता है. धर्म कर्म तब तक जब तक समाज ठीक ठाक चलता रहे.तब तक सरकारे भी ठीक चलती रहती है.जब नियम मिट जाते है सरकार का कहीं पता ही नहीं चलता.ऐसी स्थिति को ही जंगलराज कहते है.ऐसी स्थिति को उत्पन करने वाले हम स्वयम हैं इश्वर नहीं.शरीरो का नष्ट होना ही संसार का नष्ट होना है.इसी को प्रलय कहते हैं.
जब प्रलय होती है तो शरीर नष्ट होते हैं.पांच तत्व बिलकुल वेसे के वेसे बने रहते हैं.इस बात तो तो विज्ञानिक भी सिध्ध कर चुके हैं कि no matter can be produced or destroyed but it changes its qualities to get a new shape.अर्थात न तो किसी विषय की उत्पति की जा सकती है और न हीं किसी विषय को नष्ट किया जा सकता है.अथवा उसमे गुणवता का बदलाव इसलिए आता है कि वो नया रूप ग्रहण कर सके.यही सिन्धांत जीवन मृत्यु पर भी लागु हो रहा है.ये युगों युगों से सभी जानते हैं कि ये शरीर पञ्च तत्वों से निर्मित है.अर्थात प्रकृति का प्रतिरूप है.प्रकृति में पांचो तत्व विराजमान हैं.जब इन पांच तत्वों मैं प्रदूषण होगा तो शरीर नष्ट होगा.कानून मैं पांच में से चार तत्वों कि ओर तो ध्यान दिया गया है.पांचवां तत्व छोड़ दिया गया है .चार तत्व पृथ्वी , जल,वायु और आकाश.इनको शुध्ध रखने के लिए कानून है.इनको प्र्दुष्ण रहित करने के लिए तो हमने कानून बना लिए हैं.परन्तु अग्नि तत्व को शुध्ध रखने के लिए कौन सा कानून बना है .कहीं कोई कानून नहीं है.आकाश तत्व को शुध्ध रखने के लिए ऊँची आवाजो पर नियंत्रण रखने के लिए तो कानून है.आकाश में दागे जाने वाले प्र्क्षेपात्रों पर कौन सा कानून बना रखा है ? अतः आकाश में भी प्र्दुष्ण है. परन्तु क्या ये हमारे बस में है कि हम ऐसा कानून बनाये कि आकाश में प्र्दुष्ण न फेले.ऐसा कर पाना असंभव तो नहीं कुछ कठिन जरुर है.
इसका अर्थ ये नहीं कि हम कुछ नहीं कर सकते हम बहुत कुछ कर सकते हैं.ये भारत का सोभाग्य कि यहाँ प्रकृति का पूजन किया जाता है.प्रकृति इश्वर कि अर्धांग्नी है.भारत भूमि पर पृथ्वी का पूजन किया जाता है.जब भी हम हवन करने बैठते है तो सबसे पहले पृथ्वी तथा ग्रहों का पूजन किया जाता है.जल तत्व का पूजन करने के लिए कलश कि स्थापना कि जाती है.अग्नि तत्व का पूजन हवन से हो जाता है.वायु तत्व का पूजन करने के लिए हम अगरबत्ती का इस्तेमाल करते हैं.अग्नि तत्व का पूजन करने के लिए हम सभी भारतवासियों के लिए जरुरी हो गया है . इसका केवल मात्र एक ही उपाय है कि भारत के प्रतियेक घर में सुबह या शाम को शुध्ध घी का दीपक जलाया जाये जो कम से कम आध घंटा जले .जिसे घर के बीचों बीच डाइनिंग टेबल पर रखा जाये.घर आंगन में या छत पर एक ऐसा चुहला बनाया जाए जिसमे सप्ताह मैं एक दिन अग्नि प्रज्वलित कि जाए .इतना सा त्याग करना प्रत्येक भारतवासी का कर्त्व्ये है . ये कार्य इतना प्रभावशाली होगा कि घर व् घर से बहार का वातावरण शुध्ध हो जाएगा तथा घर से बिम्मारिया भाग जाएगी तथा प्र्दुष्ण के कारण आसमान में जिस शीशे का निर्माण हो गया है उसके हट जाने कि सम्भावना बन जाएगी. ये कार्य पूरा यदि संसार कर ले तो कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं . संसार की न सही कम से कम भारत की रक्षा कि सम्भावना बन जाएगी .उस शीशे के कारण उतरी ध्रुव की बर्फ पिंघल रही है कियोंकि अग्नि अर्थात गर्मी का प्रकोप बड रहा है.. जो किसी भी समय प्रलय का कारण बन सकती है.
आपका अपना ,
प्रेम
